( तर्ज - अजि ! कौन जगा जगनेकी है ० )
मैं भूल गया हरगीज जगा ,
करके न प्रभूका प्रेम लगा || टेक ||
कुछ न हुआ तीरथ जानेसे ,
कुछ न हुआ जपके पानेसे
इस मनने दिया बिचमेहि दगा ,
करके न ० ॥१ ॥
देखा के मंदिर सुख पाऊँ ,
पर सुख नहीं , बडा घबराऊ
मन विषयनमों जात भगा ,
करके न ० ॥ २ ॥
कहिं पोथीको जाय निहारा ,
पर मुझको निद्राने घेरा
आलस - कालने आय ठगा ,
करके न ० ॥ ३ ॥
तुकड्यादास कहे मैं भूला ,
बिन गुरु - संगत पड़ा अकेला ।
उस बिन जगहूमें न सगा ,
करके न ० || ४ ||
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